sai baba ki ansuni kahani

  sai baba ki ansuni kahani   

https://sai74.blogspot.com/?m=1

sai baba ki ansuni kahani   

  

साई बाबा ( 28 सितम्बर  1830 से 15 अक्टूबर 1918 )


  • sai baba ki ansuni kahani 

    जैसे सभि पर्वतो  में  हिमालय को हि सबसे  ऊचा और क्षेष्ट  माना जाता हैं  .वैसे हि सभि सन्तो में  सबसे क्षेष्ट हैं  साई बाबा को आदर मिलता हैं  .


  • साई बाबा के नाम के सामने थे, लगाना उचित नहीं  हैं। क्योकि  वो आज भि हमलोग के साथ है. आज तक कभि एसा नहि हुआ आपने सच्चे  दिल से आपने साई से कुछ मागा हो और वो आपको ना मिला हो एसा कभि नहीं  हो सकता है. 
  • साई बाबा एक सच्चे सिद्व पुरूष सन्त थे  .साई बाबा स्वेम भगवान को प्राप्त  कर चुके थे. और साई बाबा  स्वेम भगवान का रूप ओर  भगवान है  है  .।



  • जो कोई भक्त साई बाबा नाम लेता है. या फिरजो भि  उनहे दिल से याद करता है.



  •  वो हमेशा  उनकि मदद करते हैं  .अगर वो मदद नहि कर पाते किसि कारन वश तो वो किसि न किसि को  मदद   करने अवशय भेजते हैं  .



  • साई  कि यह बात भि सच हैं  जो साई के सच्चे  और परम भक्त होते हैं  अगर वो तकलिफ या दुख मे है तो स्वेम  साई बाबा उनकि मदद करने जाते हैं   .



  • एसा भि कहा गया है. जो  भक्त साई  के सरन में  जाते हैं  उन्हें  अपना प्रभु  या गुरू बनाते हैं  . ना वो कभि साई को भुल पाते हैं  और नाहि साई कभि उन्हें  भुलते है. 



  • बस एक बार आप उनकि शरन में  चले जायेगे तब आप अपने आस पास साई को हमेशा पायेगे साई बाबा प्ररम ज्ञानी और दयालु  हैं .



  • साई बाबा के बारे में उनकि जाति रूप जन्म  हर चिज को लेकर बहोत भर्म  हैं  ,



  • आज भि कोइ यह नहीं  जा न पाया कि साई बाबा हिन्दू  थे  या मुसलमान ? साई बाबा को   लेकर सबमे बहोत सि बातो का भर्म हैं. कोइ केहते हैं  साई कबिर, या नामदेव, या पांडुरग, आदि के अवतार थे।



  • कुछ लोग केहते हैं कि साई अक्कलकोट महाराज के अशं हैं ।




  • कट्र धार्मिक युग में व्यक्ति हर सन्त को धर्म के आईने में  देखना चाहते हैं। कट्रर पंथिहिदु भि यह जानना चाहते हैं  .कि साई हिन्दू  थे या मुसलमान?  हिन्दु  सोचते हैं  अगर साई मुसलमान थे तो हम उनकि पुजा क्यो करते हैं  .



  • और मुसलमान भि यह जानना चाहते हैं  कि साई हिन्दु हैं  , तो हम उनकि समान  पर जाकर दुआ क्यो करे.।
  • साई बाबा के बारे में  अधिकाश  जानकारी  क्षीगोविदंराव रघुनाथ दाभोलकर द्वारा लिखित ' क्षी सांई सच्चरित्र, से मिलती है।


  •  मराठि में  लिखित इस मुल गर्थ  का कई  भाषाक
  • को में  अनुवाद  हो चुका है .


  • यह सांई सच्चरित्र सांई बाबा केक्षजिंदा रहते हि  1910 से लिखना शूरू किया और  1918 समाधिस्थ होने तक इसका लेख चला।


  •  लेकिन कितने लोग हैं  जो केहते हैं  सबका मालिक एक कि घोषना करते हैं  . साई कि पुजा करते है. उन्हे मानते हैं  और  वहि लोग जो सांई को मानते हैं  ।



  • कितने साधु सन्तो जयोतिष  बाबा आदि बहोत से चकरो यहा -वहा  जगह -जगह भटकते हैं .क्योंकि वो सब भ्रमित  होते हैं  .  



  • उनको अपने सांई बाबा पर विश्वास  नहीं  होता। सांई चाहते थे  . कि सब इन जोगी फरोगी जयोतिष से  सब दुर रहे. सांई बाबा चाहते थे. 



  • सब एक साथ रहे समाज में  सब एक दुसरे के  मदद करे कंई भिन दिन दुखि ना हो वो हमेशा सबके दुख को देखकर खुद दुखि हो जाते थे एसे प्ररम ज्ञानी  सांई बाबा को कोई हिन्दू  माने , या मुसलमान  माने , या फकिर माने लेकिन यह कखिल सत्य है.।



  •  कि साई बाबा  एक सच्चे  ईशवर हैं  .जिनके दर्शन मात्र से सब दुखः दुर हो जाते हैं  .जिनका नाम लेने से सकंट आधे हो जाते हैं  एसे परम क्षि साई को मेरा क्षर्दा  नमन्ः प्रणाम


  • सांई बाबा ना हिन्दू   हैं  और  ना हि  मुसलमान हैं  .सांई केवल अपने भक्तो के बाबा हैं  . 



  • सांई बाबा नाम सांई को  भारत के पक्षचिम महाराष्ट्र  के शीरडि कषबे से मिला हैं . ।



  • जाई बाबा अपने भक्तो कि सब मनोकामना  पुरि करते है.  कभि न कभि साई ने एसि मनोकामना  भि पने भक्तो कि मानि हैं  जो वो आज भि याद करते है.

सांई हिन्दू  थे या मुसलमान जानिए इन बातो के।                                   आधार।  पर 



  • सांई अपना ज्यादातर वक्त मुस्लिमो फकिरों के संग बिताते थे, लेकिन माना जाताहै .।
  • कि उन्होने किसीके साथ कोई भि व्यवहार धर्म और जाति  के आवार पर नहीं किया जो साई बाबा को  हिन्दु मावे उनके वे उनके  हिन्दु होने का तर्क देते है,  जैसे हैं.।

हिन्दू  होने के कुछ कारणः

  • बाबा धुनी रमाते थे। धुनी तो सिर्फ शैव और नथपंथि सतं ही जलाते है।

२.बाबा के कान बिधे हुएथे। कान छेदन सिर्फ नाथपंथियों मे हि होता हैं  ।

३.सांई हर सप्ताहनाम कीर्तन का आयोजन करते थे। बाबा कहते थे-ठाकुरनाथ कि ड़कपुरी , विट्ल की पढरी,  रनछोर कि द्ववारका यहि तो है  .

४.सांई बाबा कपाल पर चन्दन और कुमकुम लगाते थे।

५.जहा सबको सांई बाबा पेहलि बार दिखे थे। उस स्थान पर बाबा के गुरू का तप स्थान था।  जब उस समाधि खुदाई कि गई तब वहा चार दिपक जल रहे थे।

म्हालसापति तथा शिर्डी  के अन्य भक्त  इस स्थान को बाबा केक्षगुरूका समाधि-स्थान  मानकर सदैव नमन  किया करते थे।

६.साई के बारे में  जानकर मानते हैं  कि वे नाथ सप्रदाय का पालन करते थे। हाथ में  पानी का कमंडल रखना,  धुनी रमाना, हुक्का पीना, काध बिधवाना और भिक्षा पर ही निर्भर रहना यह नाथ सप्रदायं के साधुओं कि निशानि हैं.।

 नाथो में  धुधि जलाना जरुरि हैता हैं  .सिर्फ़  इस एक कर्म से ही उधका नाथंपथी होना सिद्व होता है।


कुछ लोग सांई को एक मुस्लिम फकीर मानते हैं। वे कहते हैं कि सांई एक मुस्लिम फकीर थे और मुसलमानों की तरह ही उन्होंने अपना जीवन-यापन किया। इसके लिए वे तर्क देते हैं-

https://sai74.blogspot.com/2020/05/sai-baba-ki-ansuni-kahani.html?m=1



१.सांई शब्द  फारसि का है. जिसका अर्थ  होता हैं  सतं। उस काल मे आमतौर  पर मुस्लिम सन्यासियो  के लिये इस शब्द का प्रयोग किया जाता था.। शिर्डी  में  सांई सबसे पहले जिस मन्दिर  के बाहर आके रूके थे। 

उस मंदिर  के पुजारि ने सबसे पेहले साई बोलकर हि सम्बोधित किया था.  मंदिर  के  पुजारि को वे मुसलिम  फकिर धजर आये तो तभि तो उन्हें  सांई नाम से केहकर पुकारा


२.सांई ने यह भि कहा कि 'सबका मालिक एक'। सांई सच्चरित्र  के अध्याय  ४.५.७ में  इस बात का उल्लेख  हैं  कि वे जीवन भर सिर्फ   ' अल्लाह मालिक है यहि बोलते रहे  ।

कुछ लोगो ने उन्हें  हिन्दू  सतं बनाने के लिए यह झुठ प्रचारित  किया वे ' सबका मालिक  एक है'यह भि कुछ लोगो ने बोआ कि हिन्दू  बताने के लिए  इस चिज कि प्ररचार किया है. कि बाबा बोलते थे 'सबका मालिक एक.,बोलते थे। 

३.कोई हिन्दू  सतं सिर पर कफन जैसा  नहीं  बाधता, एसा सिर्फ  मुस्लिम  फकिर हि बाधते है. जो पहनावा साईं का था वो मुस्लिम  फकिरो का हि होता हैं  .।

४..सांई सच्चरित्र  के अनुसार  सांई बाबा पुजा -पाठ ध्यान,प्रणायक्ष और योग के ब रे में लोगों से केहते थे उनके इस प्रवधन से पता चलता है  कि वे हिन्दू  धर्म  विरोधी  थे. 
अगले पन्ने पर, कहां हुआ सांई का जन्म..
अगले पन्ने पर कौन थे सांई बाबा के माता-पिता...


५.सांई बाबा ने रहने के लिए  मस्जिद काहि  चयन क्यों  किया?  वहा और भि स्थान थे लेकिन वो ज़िन्दगी  भर मसजिद  मे हि रहे.। 

६. मसजिद  से बर्तन  मगवाकर वै मोलवी से फातिहा पढनेके लिए केहते थे  इसके बाद हि भोजन कि सुरू वात होति थि.। 

 ७.सांई को सभि यवन मानते थे  वे हिन्दुस्तान के नहीं,  अफगानिस्तान  के थे इसीलिए  लोग उन्हे यवन का मुसलमान कहते थे। उनकि कद काठि और डिल डोल यवन हि था.। 

सांई सच्चरित्र  के अनुसार एक बार सांई ने इसका जिक् भि किया था.। जो भि लोग उनसे मिलने जाते थे.। उन्हें  मुस्लिम  फकिर हि मानते थे.। 
लेकिन उनके सिर पर लगे चन्दन  को देखकर लोग भर्मित  हो जाते थे.। 

८.ठड़ से बचने के लिए  बाबा धुनि में  आग जलाते थे. उनके इस आग जलाने कदो लोगों  ने धचनि रमाना माना.। 


महाराष्ट्र के पथरी (पातरी) गावं में  सांई बाबा का जन्म 

https://sai74.blogspot.com/2020/05/sai-baba-ki-ansuni-kahani.html?m=1

२८सितम्बर १८३५ को हुआ था। कचछ लोग मानते हैं  कि उनका जन्म २७ सितम्बर १८३८ को तत्कालीन  आन्धप्रदेश के पथरी गावं में  हुआ था।  और उनकी मृत्यु२८सितंबर १९१८को शिर्डी मे हुई। 


ज्यादातर  जगह पर लिखा है  .कि सांई १८५४ में  पहलि बार शिर्डि में  देखे गए,  तब वे किशोण अवसथा के थे.। यदि उनकी उम्र  उस वकत १६़ वर्ष थी तो इस मान से  १८३८ में  उनका जन्म हुआ होगा  ।

खुद को सांई का अ़ताऋ मानने वाले सत्य साई बाबा ने बाबा का जन्म २७ सितंम्बर १८३०को महाराष्ट्र  के पाथरि (पातरी)  गावं मे ब्ताया गया है.

 यस सत्य सांई बाबा कि बात माने तो शिर्डी में  सांई का आडमनके समय उनकि उम्र २३-२५के बिच में  रहि होगी.। सत्य सांई बाबा का अनुमान सहि लगता हैं  क्योंकि  उनकि जीवन यात्रा पर विचार करे तोउनका उसि उम्र  में  शिर्डि में  प्रवेश  होना चाहिए  .।

 एसा विश्वास किया जाता हैं  कि महाराष्ट के परभणी जिले के पाथरी गावं में  सां बाबा का जन्म  हुआ था.।और सेल्यु में  बाबा के गुरु वैकुशां रहते थे.। यह हिस्सा  हैदराबाद  निजामशाही का एक भाग था। 

 भाषा के आधार पर प्रान्त रचंना के चलते यह हिस्सा  महाराष्ट्र  में  आ गया तो अब इसे महाराष्ट्र  का हिस्सा  माना जाता है  .। महाभारत काल में  पाणडवो ने यहा अष्मवमेघ यज्ञ किया था.। यब अर्जुन  अपनि फैज लेकर यहा उपस्थित थे.। 

अर्जुन  को पार्थ  भि कहा जाता हैं  .यहि पार्थ बिगडकर पाथरी है गया।  अब पातरी व पात्री कहा जाता हैं  .।  


 सांई के माता पिता 

https://sai74.blogspot.com/2020/05/sai-baba-ki-ansuni-kahani.html?m=1


सांई के जन्म स्थान  पाथरि (पातरी)  पर एक मन्दिर  बना हुआ है  .।
 मन्दिर के अन्दर  सांई कि आकर्षित  मुरती  हैं  .यह बाबा का निवास रथान हैं  .जहा पुरानी  वस्तुओं  जैसे  बर्तन,  घन्टि  और देवि देवताओ कि मुर्ती रखि हुई है.। 

मन्दिर  के ब्यस्थापो के अनुसार त्रह साई बाबा का जन्म स्थान  हैं  .। उनके अनुसार सांई के पिता का नाम  गोविन्ंद भाऊ माता का नाम देवकि अम्मा था.।
  कचछ लोग उनके पिता का नाम गंगा  भाऊ  बतते हैं  .और माता का नाम देव गिरि अममा बताते हैं  .वे यजुवेदि। बामण् होकर कशयप गोत्र के थे.।

 सांई के चले जाने के बाद उनके परिवार  शायद हैदराबाद  चले गये और फिर उनका कोई अता पता नहीं  चला.। 


 निवेदन
आशा करता हु ये पोस्ट आपको पसन्द  आये " sai baba ki ansuni kahani   " इसे  share  और पसन्द करे ।









































Post a Comment

0 Comments